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रोगनाशक पिशाची देवी

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  पिशाची शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े होने लगते हैं! ऐसा लगता है कि कोई लंबे दांतों वाली कोई डरावनी सी आकृति, कोई मांसाहारी या भूत प्रेत जैसी ही कोई शक्ति होगी! लेकिन वास्तव में पिशाची शक्ति हमारे भीतर की एक कुंडलिनी नाम की शक्ति की अधिष्ठात्री देवी है! हमारे जो सप्त चक्र शरीर में विद्यमान है; इन्ही सप्त चक्रों में एक हृदय चक्र है! इस हृदय चक्र की स्वामिनी ही पिशाची देवी है! जिसे महापिशाचिनी भी कहा गया है! अधिकांशतया हमारे जितने भी रोग हैं हमारे शरीर में जितने भी दोष है वो सब हमें पिशाचिनी शक्ति की वजह से ही लगते हैं। पिशाची शब्द की साधारण सी परिभाषा ये समझ सकते हैं कि, "किसी एक विषय अथवा वस्तु में हृदय का लगातार लगे रहना पिशाच वृत्ति है।"किसी एक विषय को जब हम इतना अधिक पसंद करने लग जाए कि अपना तन, मन, धन यहां तक कि अपना आत्मोत्सर्ग तक करने के लिए तैयार हो जाए तो ऐसी वृत्ति पैशाचिक वृत्ति कहलाती है! और हमारा मन पिशाच ही तो है! कभी धन के लिए, कभी नाम के लिए, कभी वैभव के लिए और भी न जाने कितने विषय वस्तुओं के लिए हम प्रयासरत रहते हैं और हमारा हृदय इस दुनिया से हटना ही नहीं चाहता!