Nanda devi

 NANDA DEVI

नन्दा देवी


दुर्गा सप्तशती में मूर्ति रहस्य में बताया गया है की यदि नन्दा देवी की कोई भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा करता है तो तो वे तीनो लोकोको उपासक के आधीन कर देती है ।


उनका स्वरुप ध्यान इस प्रकार है :-
काँकोत्तमकान्ति: सा सुकांतिकनकाम्बरा ।
देवी कनकवर्णाभा कनकोत्तमभूषणा।।
कमलांकुशपाशाब्जैरलंकृत चतुर्भुजा ।
इंदिरा कमला लक्ष्मी: सा श्री रुक्माम्बुजासाना ।।

अर्थ :-
देवी के अंगोंकी कान्ति कनक ( सोने ) के समान उत्तम है । वे सुनहरे रंग के सुन्दर वस्त्र धारण करती है । उनकी आभा सुवर्णके तुल्य है तथा वे स्वर्ण के ही उत्तम आभूषण धारण करती है । उनकी चार भुजाए कमल, अंकुश, पाश और शंखसे सुशोभित है ।

इनके ही नाम है इंदिरा, कमला, लक्ष्मी, श्री और रुक्माम्बुजसाना  आदि है ।

Images of the goddess Nanda Devi are almost kaleidoscopic—she is Parvati, the gentle daughter of the mountains who illuminates the minds of sages meditating on the mountains and bestows wisdom on them; she is the angry goddess who protects her devotees by hurling her weapons at their enemies; she is the harsh goddess who is offended by the population and has to be appeased with the sacrifice of a goat; she is the jealous maiden who feels threatened by mortals; the soft protective mother who is pleased with her devotee and loves her so, that she cannot live away from her, the radiant and gracious goddess of bliss who confers joy on all, who smiles at the world, who bestows her name on the mountain, who owns the mountain, and who in fact, is the mountain.


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