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रक्तदंतिका देवी



प्रणाम
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ॐ नमः शिवाय

आद्या शक्ति महादेवी का #रक्तदंतिका स्वरूप मूल रूप से जगदंबा का तामसिक स्वरूप माना जाता है। रक्तदंतिका का अर्थ है जिस देवी के दांत खून से सने हैं। रक्तदंतिका स्वरूप साहस, शौर्य, बल, पराक्रम का अद्भुत मिश्रण है। देवी रक्तदंतिका से जुड़ी मूलतः तीन प्रचलित किवंदीती हैं पहली मान्यतानुसार अनुसार राजा हिरण्यकश्यप के तेरह अधर्मी पुत्रों के वध के लिए ही रक्तदन्ता देवी ने अवतार लिया था। 

दूसरी मान्यतानुसार आद्यशक्ति ने रक्तबीज दैत्य के वध हेतु रक्तदंतिका स्वरूप धारण किया था। रक्तबीज को वरदान था कि उसके रक्त के एक बूंद के पृथ्वी पर गिरते ही उसी की तरह एक और दैत्य उत्पन्न होगा। जब देवी असुर संग्राम में बार-बार रक्त की बूंदें गिरते ही असंख्य रक्तबीज उत्पन्न होने लगे तब देवी ने विकराल रूप धारण कर अपनी जीभ फैलाकर रक्तबीजों को जीभ पर लेकर उनके रक्त का पान कर दैत्यों का संहार किया। 

तीसरी मतानुसार कालांतर में दैत्य वैप्रचलित से संसार को मुक्ति दिलाने हेतु देवी ने रक्तदंतिका रूप लिया। वैप्रचलित असुर के काल में पाप सर्वाधिक भीषण स्तर पर था। असहाय देवगण ने देवी की उपासना की जिससे जगदंबा ने उनकी पुकार पर रक्तदंतिका रूप में प्रकट होकर असुर सेना के साथ-साथ वैप्रचलित का भी भक्षण कर दैत्यों का रक्त पान किया। रक्तदंतिका के विशेष उपाय व पूजन से दुर्भाग्य समाप्त होता है। शत्रुओं का अंत होता है। तथा साहस में वृद्धि होती है।

प्रणाम
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ॐ नमः शिवाय
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श्री रक्तदन्तिका देवी जी माँ दुर्गा का ही एक मूर्ति रूप है ।
#durgasaptshati के अनुसार इनके बारे में यह कहा गया है की ये देवी सब प्रकारके भयको दूर करने वाली है ।इनके शरीर का रंग लाल है और अंगों के समस्त आभूषण भी लाल ही है । उनके अस्त्र शस्त्र, नेत्र, सिरके बाल, तीखे नख और दाँत सभी रक्त वर्ण के है ;इसलिए वे रक्तदन्तिका कहलाती है और अत्यंत भयानक दिखायी देती है ।
जैसे स्त्री पतिके प्रति अनुराग रखती है, उसी प्रकार देवी अपने भक्त पर माता की भाँति स्नेह रखते हुए उसकी सेवा करती है ।

स्वरुप :
देवी रक्तदन्तिका का आकार वसुधाकी भाँति विशाल है । उनके दोनों स्तन सुमेरु पर्वत के समान है । वे लम्बे, चौड़े, अत्यंत स्थूल एवं बहुत ही मनोहर है । कठोर होते हुवे भी अत्यंत कमनीय है और पूर्ण आनंद के समुद्र है । वे अपने चार भुजाओं में खड़ग, पानपात्र, मुसल और हल धारण करती है । ये ही रक्तचामुंडा और योगेश्वरी देवी कहलाती है ।

आद्या शक्ति महादेवी का #रक्तदंतिका स्वरूप मूल रूप से जगदंबा का तामसिक स्वरूप माना जाता है। रक्तदंतिका का अर्थ है जिस देवी के दांत खून से सने हैं। रक्तदंतिका स्वरूप साहस, शौर्य, बल, पराक्रम का अद्भुत मिश्रण है। देवी रक्तदंतिका से जुड़ी मूलतः तीन प्रचलित किवंदीती हैं पहली मान्यतानुसार अनुसार राजा हिरण्यकश्यप के तेरह अधर्मी पुत्रों के वध के लिए ही रक्तदन्ता देवी ने अवतार लिया था। 

दूसरी मान्यतानुसार आद्यशक्ति ने रक्तबीज दैत्य के वध हेतु रक्तदंतिका स्वरूप धारण किया था। रक्तबीज को वरदान था कि उसके रक्त के एक बूंद के पृथ्वी पर गिरते ही उसी की तरह एक और दैत्य उत्पन्न होगा। जब देवी असुर संग्राम में बार-बार रक्त की बूंदें गिरते ही असंख्य रक्तबीज उत्पन्न होने लगे तब देवी ने विकराल रूप धारण कर अपनी जीभ फैलाकर रक्तबीजों को जीभ पर लेकर उनके रक्त का पान कर दैत्यों का संहार किया। 

तीसरी मतानुसार कालांतर में दैत्य वैप्रचलित से संसार को मुक्ति दिलाने हेतु देवी ने रक्तदंतिका रूप लिया। वैप्रचलित असुर के काल में पाप सर्वाधिक भीषण स्तर पर था। असहाय देवगण ने देवी की उपासना की जिससे जगदंबा ने उनकी पुकार पर रक्तदंतिका रूप में प्रकट होकर असुर सेना के साथ-साथ वैप्रचलित का भी भक्षण कर दैत्यों का रक्त पान किया। रक्तदंतिका के विशेष उपाय व पूजन से दुर्भाग्य समाप्त होता है। शत्रुओं का अंत होता है। तथा साहस में वृद्धि होती है।

VikaasAnupamMaarg
mahasiddhajvc@gmail.com

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