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Showing posts from January, 2021

अठारह पुराण

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 ॐ नमः शिवाय सब कल्पों में एक ही पुराण था, जिसका विस्तार 100 करोड़ स्लोको में था । वो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - चारो पुरुषर्थो का बीज मना गया है । सब शास्त्रों की प्रवृत्ति पुराणों से ही हुई है, अतः समयानुसार लोकमे पुराणों का ग्रहण न होता देख परम बुद्धिमान भगवान विष्णु प्रत्येक युग में व्यास रूप से प्रकट होते है व्यास जी प्रत्येक द्वापर में 4 लाख श्लोको के पुराण का संग्रह करके उसके 18 विभाग कर देते है और भूलोक में उन्हींका प्रचार करते है । निचे आप इन पुराणों के नाम पढ़ सकते है । इन पुराणों के विस्तार जानकारी से सम्बंधित ज्ञान के लिए इसी blog में, search करें । 1. ब्रह्म पुराण 2. पद्म पुराण 3. विष्णु पुराण 4. वायु पुराण 5. भागवत पुराण 6. नारद पुराण 7. मार्कण्डेय पुराण 8. अग्नि पुराण 9. भविष्य पुराण 10. ब्रह्मवैवर्त पुराण 11. लिंग पुराण 12. वाराह पुराण 13. स्कन्द पुराण 14. वामन पुराण 15. कुर्म पुराण 16. मत्स्य पुराण 17. गरुड़ पुराण 18. ब्रह्माण्ड पुराण https://vikaasanupammaarg.in/

शुक्लपक्ष के तिथियों के नाम

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 ॐ नमः शिवाय शुक्लपक्ष के तिथियों के नाम 1. संज्ञानम 2. विज्ञानम 3. प्रज्ञानम 4. जानदभिजनत 5. आनन्दनम 6. संकल्पमानम 7. प्रकल्पमानम 8. उकल्पमानम 9. उपकलृपम 10. क्लृपम 11. श्रेयो 12. वसीव 13. आयत 14. संभूतम 15. भूतम https://vikaasanupammaarg.in/

कृष्णपक्ष के तिथियों के नाम

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 ॐ नमः शिवाय कृष्णपक्ष के तिथियों के नाम 1. प्रस्तुतम  2. विषटुतम  3. संस्तुतम 4. कल्याणम् 5. विश्वरूपम 6. शक्रम 7. अमृतम 8. तेजस्वी 9. तेज: 10. समिद्धम 11. अरुणम 12. भानुमन 13. मारिचीमद 14. अभित्पत 15. तपसवत 9491368550 💞Vikaasanupammaarg 💞 https://vikaasanupammaarg.in/

Kurukulla devi

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 ॐ नमः शिवाय 💞💞💞 Kurukullā is a goddess whose body is usually depicted in red with four arms, holding a bow and arrow made of flowers in one pair of hands and a The other hand on the same side also holds a trident where Kankana Naga swirls around it and noose of flowers in the other pair. She dances in a Dakini-pose and crushes the asura Rahu (the one who devours the sun). According to Hindu astrology, Rahu is a snake with a demon head (Navagraha) who represents the ascending lunar node.

कामेश्वरी देवी

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 ॐ नमः शिवाय दुर्गा सप्तशती के दसवे अध्याय में श्री भगवती कामेश्वरी जी के बारे में कहा गया है की, देवी मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली शिवशक्ति स्वरुपा है । वे तपाये हुए स्वर्णके समान सुन्दर है । सूर्य, चंद्र और अग्नि - ये ही तीन इनके नेत्र है तथा वे अपने मनोहर हाथोंमें धनुष-बाण, अंकुश, पाश और शूल धारण करती है । 💞💞 कामेश्वरी देवी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि हैं , जो उगते हुए सूर्य अथवा अंधेरे से रोशनी की ओर ले जाने वाली । यह इच्छाओं की देवी हैं , आपके गहनतम विचारों में छुपी हुई इच्छाओं को प्रगट करना और पूर्ति करना यही उसका कार्य हैं। इस देवी का तेज दस करोड़ सूर्य की तेज की भांति हैं। कामदेव को भस्म करने से पूर्व उसे अपने नेत्रों में सुरक्षित रखने वाली , तथा उसे अपने नेत्रो से फिरसे पुनः जीवन देने वाली जो शक्ति हैं , वह यही हैं । कामदेव के पाँच बाण और पाँच कामदेव के रूप में जो तेज है , वह इसी देवी के कारण उसे प्राप्त होता हैं। श्री कामेश्वरी स्तुति || Shri Kameshwari Devi Stuti   युधिष्ठिर उवाच  नमस्ते परमेशानि ब्रह्मरुपे सनातनि ।  सुरासुरजगद्वन्द्दे कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ १ ॥  न ते

शुक्राचार्य जी

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 ॐ नमः शिवाय भगवान् ब्रह्माजीके तीसरे मानसिक पुत्र भृगु हुए । इन भृगुके कवि हुए और कविके असुरगुरु महर्षि शुक्राचार्य हुए । ये योगविद्यामें पारङ्गत थे । इनकी ' शुक्रनीति ' बहुत प्रसिद्ध है । यद्यपि ये असुरोंके गुरु थे, किंतु मनसे भगवानके - अनन्य भक्त थे । असुरोंमें रहते हुए भी ये उन्हें सदा धार्मिक शिक्षा देते रहते थे । इन्हीकें प्रभावसे प्रह्लाद, विरोचन, बलि आदि भगवदभक्त बने और श्रीविष्णुके प्रीत्यर्थ बहुतसे यज्ञ - याग आदि करते रहे । इनके पास ' मृतसंजीवनी विद्या ' थी । इससे ये संग्राममें मरे हुए असुरोंको जिला लेते थे । बृहस्पतिजीके पास यह विद्या नहीं थी । इसलिये उन्होंने अपने पुत्र कचको इनके पास यह विद्या सीखनेके लिये भेजा । इन्होंने उसे बृहस्पतिजीका पुत्रजानकर बड़े ही स्नेहसे वह विद्या सिखाथी । असुरोंको जब यह बात मालूम हुई, तब उन्होंने कई बार कचको जानसे मार डाला, किंतु शुक्राचार्यजीने अपनी विद्याके प्रभावसे उसे फिर जीता ही बुला लिया । अन्तमें दैत्योंने कचको मारकर उसकी राखको शुक्राचार्यजीको धोखेमें सुराके साथ पिला दिया । ऋषिने ध्यानसे देखा और कचसे कहा, मैं तुझे पेटमें ही

Ardhnarishwar ji

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 ॐ नमः शिवाय Information about Ardhnarishwar Puja & Yajna Lord Shiva is one of the most powerful Hindu Deity and is also known as many other names like Mahadev, Devo ke Dev, Maha Mrityunjay as per Hindu Mythology and Ancient Vedic Texts. Ardhnarishvara is a combined form of Lord Shiva and his consort Goddess Parvati. Ardhnarishwara is depicted as half male and half female, split down in the middle. The right half is usually the male part i.e Lord Shiva and the left half is the female part i.e Goddess Parvati. Spiritually, Lord Ardhnarishvara represents the combination of masculine ( Shiva ) and faminine ( Shakti ) energies of the universe which asserts that the male and female energies of the universe are inseparable from each other and it is a combination of these two energies which are necessary and responsible for the creation of this universe. Therefore, worshipping a combined form of Lord Shiva and Shakti in the form of Ardhnarishwar is considered to be an ultimate offering si

गर्भादान संस्कार

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ॐ नमः शिवाय इस संसार में प्रमुख तथा श्रेष्ठ मानव प्राणी की उत्पत्ति सुदृढ़, सतेज तथा दीर्घायु होने के लिए यथाविधि तथा यथा समय बीज स्थापन करना चाहिए । इसी का नाम गर्भाधान है । गर्भ = बीज और आधान = स्थापना । गर्भाधानकाल - गर्भाधान के समय वधू १६ वर्ष से अधिक वय की तथा सज्ञान होनी चाहिए । वह प्रथम रजोदर्शन से तीन वर्षो तक (३६ बार) रजोदर्शन से शुद्ध हो चुकी होनी चाहिए । वर की आयु वधू की आयु से ड्योढी से दो गुनी तक अधिक होनी चाहिए । चतुर्थी कर्म (गर्भाधान) विवाह के चौथे दिन करना चाहिए । परन्तु उस दिन यथोक्त ऋतुकाल न हो अथवा अन्य कोई अड़चन हो तो अन्य कोई ऋतुकाल का शुभ दिन देखकर, उस दिन गर्भाधान संस्कार करना चाहिए । स्त्रियों का यथोक्त ऋतुकाल अर्थात गर्भाधान करने का समय रजोदर्शन से १६ दिन तक की अवधि का होता है । इस ऋतुकाल के १६ दिनों में से प्रथम रजस्राव की निंद्य, दूषित रोगकारक तथा उष्ण ४ राते तथा शरीरस्थ धातु को दूषित रखने वाली ११वी और १३वी राते इस प्रकार कुल ६ राते वर्ज्य करे । शेष १० रातों को यथोक्त ऋतुकाल की समझना चाहिए । अर्थात् ५-६-७-८-९-१०-१२-१४-१५-१६ वी राते समझनी चाहिए । परन्तु इनमें अ

कौलाचार

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 ॐ नमः शिवाय ऐसा मना गया है के श्रेष्ठटम आचार है वेदाचार वेदाचार से श्रेष्ट है वैष्णवाचार वैष्णवाचार से श्रेष्ट है शैवाचार शैवाचार से श्रेष्ट है दक्षिणाचार  दक्षिणाचार से श्रेष्ट है सिद्धांताचार सिद्धांताचार से भी श्रेष्ट है कौलाचार जब ज्ञान की मथानी से वेद एवं आगम के समुद्र को मथा गया, तब उससे हो सार अंश उद्भुत हुआ उसे ही कौलाचार कहते है । कौल मत में योगभोगसाहचर्यवाद भी स्वीकृत है योगी चेन्नव भोगी स्याद, भोगी चेन्नव योगवित । योगभोगात्मकं कौलं तस्मात सर्वाधिक: प्रिये ।। कौलाचार के दो प्रकार है - 1) आर्द्र कौलाचार - पंचमकार समन्वित कौलाचार 2)शुष्क कौलाचार - पंचमकार रहित कौलाचार आर्द्र शुष्कविभागेन द्विधाssचारं  पुनः श्रुणु । आर्द्रचारस्तु विज्ञेयों मकारे: पंचभिर्यत: ।।

Kali maa

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 ॐ नमः शिवाय माँ काली महाकाली को ही महाकाल पुरुष की शक्ति के रूप में माना जाता है । महाकाल का कोई लक्षण नहीं, वह अज्ञात है, तर्क से परे है । उसी की शक्ति का नाम है महाकाली । सृष्टि के आरंभ में यही महाविद्या चतुर्दिक विकीर्ण थी । महाकाली शक्ति का आरंभ में यही महाविद्या चतुर्दिक विकीर्ण थी । महाकाली शक्ति का आरंभिक अवतरण था । यही कारण है कि आगमशास्त्र में इसे प्रथमा व आद्या आदि नामों से भी संबोधित किया गया है । आगमशास्त्र में रात्रि को महाप्रल्य का प्रतीक माना गया है । रात के १२ बजे का समय अत्यंत अंधकारमय होता है । यही कालखंड महाकाली है । रात के १२ बजे से लेकर सूर्योदय होने से पहले तक संपूर्ण कालखंड महाकाली है । रात के १२ बजे से लेकर सूर्योदय होने से पहले तक संपूर्ण कालखंड महाकाली है । सूर्योदय होते ही अंधकार क्रमश: घटता जाता है । अंधकार के उतार-चढाव को देखते हुए इस कालखंड को ऋषि-मुनियों ने कुल ६२ विभागों में विभाजित किया है । इसी प्रकार महाकाली के भी अलग-अलग रूपों के ६२ विभाग हैं । शक्ति के अलग-अलग रूपों की व्याख्या करने के उद्देश्य से ऋषि-मुनियों ने निदान विद्या के आधार पर उनकी मूर्तिय