कामेश्वरी देवी

 ॐ नमः शिवाय



दुर्गा सप्तशती के दसवे अध्याय में श्री भगवती कामेश्वरी जी के बारे में कहा गया है की, देवी मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली शिवशक्ति स्वरुपा है । वे तपाये हुए स्वर्णके समान सुन्दर है । सूर्य, चंद्र और अग्नि - ये ही तीन इनके नेत्र है तथा वे अपने मनोहर हाथोंमें धनुष-बाण, अंकुश, पाश और शूल धारण करती है ।

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कामेश्वरी देवी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि हैं , जो उगते हुए सूर्य अथवा अंधेरे से रोशनी की ओर ले जाने वाली । यह इच्छाओं की देवी हैं , आपके गहनतम विचारों में छुपी हुई इच्छाओं को प्रगट करना और पूर्ति करना यही उसका कार्य हैं। इस देवी का तेज दस करोड़ सूर्य की तेज की भांति हैं।

कामदेव को भस्म करने से पूर्व उसे अपने नेत्रों में सुरक्षित रखने वाली , तथा उसे अपने नेत्रो से फिरसे पुनः जीवन देने वाली जो शक्ति हैं , वह यही हैं ।

कामदेव के पाँच बाण और पाँच कामदेव के रूप में जो तेज है , वह इसी देवी के कारण उसे प्राप्त होता हैं।


श्री कामेश्वरी स्तुति || Shri Kameshwari Devi Stuti



 

युधिष्ठिर उवाच 


नमस्ते परमेशानि ब्रह्मरुपे सनातनि । 


सुरासुरजगद्वन्द्दे कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ १ ॥ 



न ते प्रभावं जानन्ति ब्रह्माद्यास्त्रिदशेश्वराः । 


प्रसीद जगतामाद्ये कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ २ ॥ 



अनादिपरमा विद्या देहिनां देहधारिणी । 


त्वमेवासि जगद्वन्द्ये कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ३ ॥



त्वं बीजं सर्वभूतानां त्वं बुद्धिश्चेतना धृतिः । 


त्वं प्रबोधश्च निद्रा च कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ४ ॥ 



त्वामाराध्य महेशोsपि कृतकृत्यं हि मन्यते । 


आत्मानं परमात्माsपि कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ५ ॥ 



दुर्वृत्तवृत्तसंहर्त्रि पापपुण्यफलप्रदे । 


लोकानां तापसंहर्त्रि कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ६ ॥ 



त्वमेका सर्वलोकानां सृष्टिस्थित्यन्तकारिणी । 


करालवदने कालि कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ७ ॥ 



प्रपन्नार्तिहरे मातः सुप्रसन्नमुखाम्बुजे । 


प्रसीद परमे पूर्णे कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ८ ॥ 



त्वामाश्रयन्ति ये भक्त्या यान्ति चाश्रयतां तु ते । 


जगतां त्रिजगद्धात्रि कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ९ ॥ 



शुद्धज्ञानमये पूर्णे प्रकृतिः सृष्टिभाविनी । 


त्वमेव मातर्विश्वेशि कामेश्वरि नमोस्तुते ॥ १० ॥ 



॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे युधिष्ठिरकृता कामेश्वरीस्तुतिः सम्पूर्णा ॥

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