कौलाचार
ॐ नमः शिवाय
ऐसा मना गया है के
श्रेष्ठटम आचार है वेदाचार
वेदाचार से श्रेष्ट है वैष्णवाचार
वैष्णवाचार से श्रेष्ट है शैवाचार
शैवाचार से श्रेष्ट है दक्षिणाचार
दक्षिणाचार से श्रेष्ट है सिद्धांताचार
सिद्धांताचार से भी श्रेष्ट है कौलाचार
जब ज्ञान की मथानी से वेद एवं आगम के समुद्र को मथा गया, तब उससे हो सार अंश उद्भुत हुआ उसे ही कौलाचार कहते है ।
कौल मत में योगभोगसाहचर्यवाद भी स्वीकृत है
योगी चेन्नव भोगी स्याद, भोगी चेन्नव योगवित ।
योगभोगात्मकं कौलं तस्मात सर्वाधिक: प्रिये ।।
कौलाचार के दो प्रकार है -
1) आर्द्र कौलाचार - पंचमकार समन्वित कौलाचार
2)शुष्क कौलाचार - पंचमकार रहित कौलाचार
आर्द्र शुष्कविभागेन द्विधाssचारं पुनः श्रुणु ।
आर्द्रचारस्तु विज्ञेयों मकारे: पंचभिर्यत: ।।
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