Shakambari Devi
Shakambari Devi
शाकम्बरी देवी
प्रणाम
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ॐ नमः शिवाय
शाकम्भरी देवी माँ आदिशक्ति का एक सौम्य अवतार हैं। इन्हें चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रुप में भी दर्शाया गया है। ये माँ ही #वैष्णो देवी, चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी , कामाख्या, चंडी, बाला सुंदरी, मनसा, नैना और शताक्षी देवी कहलाती है।
माता शाकम्भरी देवी के स्वरूप का विस्तृत वर्णन श्री दुर्गा सप्तशती के अंत में मूर्ति रहस्य में मिलता है। इसके अनुसार शाकंभरी देवी नीलवर्णा है । नील कमल के समान उनके नेत्र हैं। गंभीर नाभि है। त्रिवल्ली से विभूषित सूक्ष्म उदर वाली है । यह माता कमल पर विराजमान हैं। उनके एक हाथ में कमल है जिन पर भंवरे गूंज रहे हैं ये परमेश्वरी अत्यंत तेजस्वी धनुष को धारण करती हैं। ये ही देवी शाकम्भरी है शताक्षी तथा दुर्गा नाम से भी यही कही जाती है। ये ही विशोका, दुष्टदमनी ,सती,चंडी,मां गौरी ,कालिका तथा विपत्तियों का विनाश करने वाली पार्वती है। जो मनुष्य शाकम्भरी का ध्यान जब पूजा स्तुति और नमस्कार करता है ।वह शीघ्र ही अन्न पान,फल और अमृत रूपी अक्षय फल पाता है।
देवी पुराण,शिव पुराण और धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार हिरण्याक्ष के वंश मे एक महादैत्य रूरु था। रूरु का एक पुत्र हुआ दुर्गम। दुर्गमासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके चारों वेदों को अपने अधीन कर लिया। वेदों के ना रहने से समस्त क्रियाएँ लुप्त हो गयी। ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग कर दिया। चौतरफा हाहाकार मच गया। ब्राह्मणों के धर्म विहीन होने से यज्ञादि अनुष्ठान बंद हो गये और देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी। जिसके कारण एक भयंकर अकाल पड़ा। किसी भी प्राणी को जल नही मिला जल के अभाव मे वनस्पति भी सूख गयी। अतः भूख और प्यास से समस्त जीव मरने लगे। दुर्गमासुर की देवों से भयंकर लडाई हुई जिसमें देवताओं की हार हुई अत: दुर्गमासुर के अत्याचारों से पीडि़त देवतागण शिवालिक पर्वतमालाओं में छिप गये तथा जगदम्बा का ध्यान, जप,पुजन और स्तुति करने लगे । उनके द्वारा जगदम्बा की स्तुति करने पर महामाया माँ भुवनेश्वरी जो महेशानी,भुवनेशी नामों से प्रसिद्ध है आयोनिजा(जिसके कोई माता-पिता ना हो) रूप मे इसी स्थल पर प्रकट हुई। समस्त सृष्टि की दुर्दशा देख जगदम्बा का ह्रदय पसीज गया और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी। माँ के शरीर पर सौं नैत्र प्रकट हुए। शत नैना देवी की कृपा से संसार मे महान वृष्टि हुई और नदी- तालाब जल से भर गये। देवताओं ने उस समय माँ की शताक्षी देवी नाम से आराधना की। शताक्षी देवी ने एक दिव्य सौम्य स्वरूप धारण किया। चतुर्भुजी माँ कमलासन पर विराजमान थी। अपने हाथों मे कमल, बाण, शाक- फल और एक तेजस्वी धनुष धारण किये हुए थी। भगवती परमेश्वरी ने अपने शरीर से अनेकों शाक प्रकट किये। जिनको खाकर संसार की क्षुधा शांत हुई। माता ने पहाड़ पर दृष्टि डाली तो सर्वप्रथम सराल नामक कंदमूल की उत्पत्ति हुई । इसी दिव्य रूप में माँ शाकम्भरी देवी के नाम से पूजित हुई। तत्पश्चात् वह दुर्गमासुर को रिझाने के लिये सुंदर रूप धारण कर शिवालिक पहाड़ी पर आसन लगाकर बैठ गयीं। जब असुरों ने पहाड़ी पर बैठी जगदम्बा को देखा तो उनकों पकडने के विचार से आये। स्वयं दुर्गमासुर भी आया तब देवी ने पृथ्वी और स्वर्ग के बाहर एक घेरा बना दिया और स्वयं उसके बाहर खडी हो गयी। दुर्गमासुर के साथ देवी का घोर युद्ध हुआ अंत मे दुर्गमासुर मारा गया। इसी स्थल पर मां जगदम्बा ने दुर्गमासुर तथा अन्य दैत्यों का संहार किया व भक्त भूरेदेव(भैरव का एक रूप) को अमरत्व का आशीर्वाद दिया।
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