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Showing posts from December, 2020

Aryama God

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 Pranam Om namah Shivaya 🙏🙏🙏🙏 Aryama as the sun-god, Pulaha as the sage, Athauja as the Yaksa, Praheti as the Raksasa, Punjikasthali as the Apsara, Narada as the Gandharva and Kacchanira as the Naga rule the month of Madhava. Aryama is actually another name for Sun. After creating Prajapati, Sun divides itself into 12 forms each representing a month of the year. Aryama representing Vaishakha. Aryaman governs that perception of living and acting. Of the code of life, of rules of implementation. His abandonment results in a failure of life, the failure to understand the purpose of action. Without Aryaman, one becomes a sociopath. He never understands why world needs to be happy, why he needs to have morals in life, why he needs to live. That makes one disastrously trapped in impasse. This form of Sun Aryama is also used for the chief of Pitraloka...where the souls of our ancestors rest before taking rebirth. This Pitraloka is a demi-heaven, and the souls fulfil their desires from the

Pitru gan puja

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 Pranam  Om namah shivaya पितृलोक : धर्मशास्त्रों अनुसार पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। यह आत्माएं मृत्यु के बाद एक वर्ष से लेकर सौ वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्य की स्थिति में रहते हैं। पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है। अन्न से शरीर तृप्त होता है। अग्नि को दान किए गए अन्न से सूक्ष्म शरीर और मन तृप्त होता है। पितरों में श्रेष्ठ है अर्यमा। अर्यमा पितरों के देव हैं। ये महर्षि कश्यप की पत्नी देवमाता अदिति के पुत्र हैं और इंद्रादि देवताओं के भाई। पुराण अनुसार उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र इनका निवास लोक है। इनकी गणना नित्य पितरों में की जाती है जड़-चेतन मयी सृष्टि में, शरीर का निर्माण नित्य पितृ ही करते हैं। इनके प्रसन्न होने पर पितरों की तृप्ति होती है। श्राद्ध के समय इनके नाम से जलदान दिया जाता है। यज्ञ में मित्र (सूर्य) तथा वरुण (जल) देवता के साथ स्वाहा का 'हव्य' और श्राद्ध में स्वधा का 'कव्य' दोनों स्वीकार करते हैं। अर्यमा का परिचय : अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पि

Manikarnika Devi

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 भगवती श्री मणिकर्णिका जी महारानी BHAGWATI SHRI MANIKARNIKA JI MAHARANI 🙏🙏🙏🙏🙏 प्रणाम ॐ नमः शिवाय PRANAM OM NAMAH SHIVAY 🙏🙏🙏🙏🙏 श्री #मणिकर्णिका देवी जी साधक को सुख तथा पुत्र देती है । यदि हम तीर्थ क्षेत्रो की बात करें तो सब को पता है के भारत देश के #उत्तरप्रदेश राज्य स्थित #वाराणसी नामक पुण्य क्षेत्र है, जिसमे अनेक घाट है, उन्ही में से एक है #मणिकर्णिकाघाट । जो अधिकतर लोगों के लिए आज  केवल एक पानी का कुण्ड मात्र रह गया है । अनेक लोग उससे सम्बंधित कहानियाँ कहते है जो पुराणों में भी वर्णित है।         यहाँ पर ऐसी मान्यता भी है की यदि इस पुण्य क्षेत्र में कोई अपने प्राण त्याग दे और उसका अंतिम संस्कार भी यही हो जाए, तो उसे साक्षात् महादेव के दर्शन प्राप्त होते है और मुक्ति प्राप्त होती है ।         लेकिन कालांतर में बहुत सारे ज्ञान का लोप हो गया । लोग धीरे धीरे कर के यह भूल गए की उस क्षेत्र में माँ पार्वती अपने एक रूप में निवास करने लगी जिसे #मणिकर्णिका देवी कहा जाता है । इनके ही नाम से इस घाट का नाम भी #मणिकर्णिका घाट पड़ गया । मणिकर्णिका देवी का #ध्यान ये देवी स्वेत कमल के आसन पर

Sankata Devi

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 #वाराणसी SANKATA DEVI संकटा देवी  प्रणाम🙏 ॐ नमः शिवाय संकटा देवी जी स्वरुप ध्यान :-   भुजैस्तु दशभिर्युक्तां लोचनत्रयभूषिताम्। मालाकमण्डलुयुतां पद्मशंखगदायुताम्।।  त्रिशूलडमरूधरां खड्गचर्मविभूषिताम्। वरदाभयहस्तां तां प्रणम्यविधिनन्दन:।। अर्थात :- देवी के दस भुजा और तीन नेत्र है । अपने दस भुजाओं में वो माला, कमण्डल, पद्म, शंख, गदा, त्रिशूल डमरू, खद्ग, वर तथा अभय मुद्रा धारण करती है । ऐसी देवी मेरा को प्रणाम हो । #Kashi स्तिथ गंगा घाट किनारे स्थित मां संकटा का मंदिर सिद्धपीठ है। यहां पर माता की जितनी अलौकिक मूर्ति स्थापित है उतनी ही अद्भृत मंदिर की कहानी भी है। धार्मिक मान्यता है कि जब मां सती ने आत्मदाह किया था तो भगवान शिव बहुत व्याकुल हो गये थे। भगवान शिव ने खुद मा संकटा की पूजा की थी इसके बाद भगवान शिव की व्याकुलता खत्म हो गयी थी और मां पार्वती का साथ मिला था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पांडवों जब अज्ञातवास में थे तो उस समय वह आनंद वन (काशी को पहले आनंद वन भी कहते थे) आये थे और मां संकटा की भव्य प्रतिमा स्थापित कर बिना अन्न-जल ग्रहण किये ही एक पैर पर खड़े होकर पांचों भाईयों ने पूज

Bhramari devi

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 भ्रामरी देवी GODDESS BHRAMARI, THE NECTARINE GODDESS: ​The queen bee is to her hive as a Goddess is to her earthlings. Bees serve as images of the miraculous interconnectedness of life. Bees secrete the golden essence of life while living in an intricate cellular structure. The busy bee, following the impulsion of nature, while pollinating flowers gather their nectar to be transformed into madhu – honey. This is similar to continued activity by human who gather crops and transform them into food. The queen bee, who all others serve during their brief life is symbolic of prakrithi and Goddess. Throughout the ages bees and honey have inspired vedic writers and poets; hence the term sacred bees.  Bhramari Devi is the Goddess of Black Bees. In Srimad Devi Bagavatam: Book 10, Chapter 13, Maharishi Veda Vyasa speaking in the voice of the sage Narada questions Lord Vishnu: “O Wise One! Who is that Bhramari Devi? What is Her Nature? Narayana states the mythology as thus. ArunadAnava, an asu

Bheema Devi

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 Bheema Devi भीमा देवी प्रणाम ॐ नमः शिवाय माता भीमा देवी महाशक्ति जगदंबा शाकम्भरी देवी का ही एक स्वरूप है। माँ भीमा देवी हिमालय और शिवालिक पर्वतों पर तपस्या करने वालों की रक्षा करने वाली देवी है। जब हिमालय पर्वत पर असुरों का अत्याचार बढा तब भक्तों के निवेदन से महामाया ने भीमा देवी का भयानक भयनाशक रूप धारण किया। माँ भीमा देवी का प्रमुख मंदिर हरियाणा राज्य के पिंजौर के समीप स्थित है। माँ भीमा देवी नीले वर्ण वाली और चार भुजाओं मे चंद्रहास नामक तलवार, कपाल और डमरू धारण करती है। माँ भीमा देवी की एक प्रतिमा सिद्धपीठ माँ शाकम्भरी देवी जी के मंदिर मे भी है जो कि सहारनपुर की शिवालिक पर्वमाला मे विराजमान है।दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य के अनुसार- भीमापि नीलवर्णा सा दंष्ट्रादशनभासुरा। विशाललोचना नारी वृत्तपीनपयोधरा ।। चन्द्रहासं च डमरुं शिर: पात्रं च बिभ्रती। एकावीरा कालरात्रि: सैवोक्ता कामदा स्तुता।। अर्थात: भीमादेवी का वर्ण भी नीला ही है। उनकी दाढें और दाँत चमकते रहते हैं। उनके नेत्र बडे-बडे हैं,माँ का स्वरूप स्त्री का है। वे अपने हाथों में चन्द्रहास नामक खड्ग, डमरू, मस्तक और पानपात्र धारण कर

Shakambari Devi

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Shakambari Devi शाकम्बरी देवी  प्रणाम 🙏🙏🙏🙏🙏 ॐ नमः शिवाय शाकम्भरी देवी माँ आदिशक्ति का एक सौम्य अवतार हैं। इन्हें चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रुप में भी दर्शाया गया है। ये माँ ही #वैष्णो देवी, चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी , कामाख्या, चंडी, बाला सुंदरी, मनसा, नैना और शताक्षी देवी कहलाती है। माता शाकम्भरी देवी के स्वरूप का विस्तृत वर्णन श्री दुर्गा सप्तशती के अंत में मूर्ति रहस्य में मिलता है। इसके अनुसार शाकंभरी देवी नीलवर्णा है । नील कमल के समान उनके नेत्र हैं। गंभीर नाभि है। त्रिवल्ली से विभूषित सूक्ष्म उदर वाली है । यह माता कमल पर विराजमान हैं। उनके एक हाथ में कमल है जिन पर भंवरे गूंज रहे हैं ये परमेश्वरी अत्यंत तेजस्वी धनुष को धारण करती हैं। ये ही देवी शाकम्भरी है शताक्षी तथा दुर्गा नाम से भी यही कही जाती है। ये ही विशोका, दुष्टदमनी ,सती,चंडी,मां गौरी ,कालिका तथा विपत्तियों का विनाश करने वाली पार्वती है। जो मनुष्य शाकम्भरी का ध्यान जब पूजा स्तुति और नमस्कार करता है ।वह शीघ्र ही अन्न पान,फल और अमृत रूपी अक्षय फल पाता है। देवी पुराण,शिव पुराण और धार्मिक ग्

Nanda devi

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  NANDA DEVI नन्दा देवी दुर्गा सप्तशती में मूर्ति रहस्य में बताया गया है की यदि नन्दा देवी की कोई भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा करता है तो तो वे तीनो लोकोको उपासक के आधीन कर देती है । उनका स्वरुप ध्यान इस प्रकार है :- काँकोत्तमकान्ति: सा सुकांतिकनकाम्बरा । देवी कनकवर्णाभा कनकोत्तमभूषणा।। कमलांकुशपाशाब्जैरलंकृत चतुर्भुजा । इंदिरा कमला लक्ष्मी: सा श्री रुक्माम्बुजासाना ।। अर्थ :- देवी के अंगोंकी कान्ति कनक ( सोने ) के समान उत्तम है । वे सुनहरे रंग के सुन्दर वस्त्र धारण करती है । उनकी आभा सुवर्णके तुल्य है तथा वे स्वर्ण के ही उत्तम आभूषण धारण करती है । उनकी चार भुजाए कमल, अंकुश, पाश और शंखसे सुशोभित है । इनके ही नाम है इंदिरा, कमला, लक्ष्मी, श्री और रुक्माम्बुजसाना  आदि है । Images of the goddess Nanda Devi are almost kaleidoscopic—she is Parvati, the gentle daughter of the mountains who illuminates the minds of sages meditating on the mountains and bestows wisdom on them; she is the angry goddess who protects her devotees by hurling her weapons at their enemies; she is the harsh goddess who

Raktdantika

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 Raktdantika devi रक्तदंतिका देवी प्रणाम 🙏🙏🙏 ॐ नमः शिवाय आद्या शक्ति महादेवी का #रक्तदंतिका स्वरूप मूल रूप से जगदंबा का तामसिक स्वरूप माना जाता है। रक्तदंतिका का अर्थ है जिस देवी के दांत खून से सने हैं। रक्तदंतिका स्वरूप साहस, शौर्य, बल, पराक्रम का अद्भुत मिश्रण है। देवी रक्तदंतिका से जुड़ी मूलतः तीन प्रचलित किवंदीती हैं पहली मान्यतानुसार अनुसार राजा हिरण्यकश्यप के तेरह अधर्मी पुत्रों के वध के लिए ही रक्तदन्ता देवी ने अवतार लिया था।  दूसरी मान्यतानुसार आद्यशक्ति ने रक्तबीज दैत्य के वध हेतु रक्तदंतिका स्वरूप धारण किया था। रक्तबीज को वरदान था कि उसके रक्त के एक बूंद के पृथ्वी पर गिरते ही उसी की तरह एक और दैत्य उत्पन्न होगा। जब देवी असुर संग्राम में बार-बार रक्त की बूंदें गिरते ही असंख्य रक्तबीज उत्पन्न होने लगे तब देवी ने विकराल रूप धारण कर अपनी जीभ फैलाकर रक्तबीजों को जीभ पर लेकर उनके रक्त का पान कर दैत्यों का संहार किया।  तीसरी मतानुसार कालांतर में दैत्य वैप्रचलित से संसार को मुक्ति दिलाने हेतु देवी ने रक्तदंतिका रूप लिया। वैप्रचलित असुर के काल में पाप सर्वाधिक भीषण स्तर पर था। असहाय

Asuri durga

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  भगवती श्री आसुरी दुर्गा जी Bhagwati shri asuri durga ji प्रणाम ॐ नमः शिवाय माँ दुर्गा के अनेक स्वरूपों में से एक है आसुरी दुर्गा जी आसुरी नाम राई का है । अतः इनके पूजन में राई प्रधान वस्तु है । यह शीघ्र फलदायिनी विद्या है । यह वशीकरण की सिद्ध विद्या है, ये प्रतिकूल व्यक्ति को भी अनुकूल कर देती है । इन्हे अथर्वा की पुत्री भी  कहा जाता है । इन देवी को ही कौतुक दुर्गा, कटुकी दुर्गा आदि नाम से पुकारा जाता है । आगम - निगम में देवी का ध्यान इस तरह है । ध्यानः- शरत्-चन्द्र-कान्तिं वराभीति-शूलं, श्रृणिं हस्त-पद्मैर्दधानाम्बुजस्याम् । विभूषाम्बराढयां हि यज्ञोपवीति, मुदाऽथर्व-पुत्रि ! करोत्यासुरी नः ।। अर्थ :- ।।जिनके शरीर की आभा शरत्कालीन चन्द्रमा के समान शुभ है, अपने कमल सदृश हाथों में जिन्होंने क्रमशः वर, अभय, शूल एवं अंकुश धारण किया है । ऐसी कमलासन पर विराजमान, आभूषणों एवं वस्त्रों से अलंकृत, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करने वाली अथर्वा की पुत्री भगवती आसुरी दुर्गा मुझे प्रसन्न रखें" ।। देवी का मन्त्र जाप करते रहने से इनकी कृपा प्राप्त होती है । ये मन्त्र आपको अपने गुरु से उनकी सेवा और दक्